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भारत का उत्थान: चुनौतियों से अवसरों की ओर

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भारत का उत्थान: चुनौतियों से अवसरों की ओर

Aerial view of woman working to dry rice grains in Habra, India.

प्रस्तुत भाषण भारत के आर्थिक उत्थान और वैश्विक स्थिति में परिवर्तन पर केंद्रित है। वक्ता भारत को एक उभरती हुई शक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो वैश्विक व्यापार युद्धों से लाभान्वित होगा और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। वे 1998 के पोखरण परीक्षणों के बाद के आर्थिक प्रतिबंधों को अवसर में बदलने के भारत के ऐतिहासिक उदाहरणों का उल्लेख करते हैं, जिसमें एनआरआई बांड और पेट्रोल पर सेस जैसे कदमों से बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा मिला। वर्तमान में, भाषण मोबाइल निर्यात में चीन को पीछे छोड़नेयूपीआई द्वारा रिकॉर्ड डिजिटल लेनदेन, और विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार कम असमानता जैसे भारत की डिजिटल और आर्थिक प्रगति पर प्रकाश डालता है। इसके अतिरिक्त, वक्ता अमेरिका और चीन की आंतरिक चुनौतियों—जैसे अमेरिका में अल्ट्रा-व्यक्तिवाद और सामाजिक सुरक्षा प्रणाली का दबाव, तथा चीन में अतिशयोक्तिपूर्ण जनसंख्या डेटा और रियल एस्टेट संकट—का विश्लेषण करते हुए यह तर्क देते हैं कि भारत वैश्विक विनिर्माण का अगला गंतव्य होगा। अंत में, भाषण भारत के भीतर विभाजनकारी ताकतों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डालता है और भारत की प्राचीन सभ्यता के वैश्विक उत्थान की भविष्यवाणी के साथ समाप्त होता है, जो नेतृत्व और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करेगा।

वर्तमान वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत की भूमिका और स्थिति क्या है?

वर्तमान वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत की भूमिका और स्थिति को देखते हुए, विभिन्न स्रोतों से मिली जानकारी निम्नलिखित है:

वैश्विक परिदृश्य में बदलाव: दुनिया वर्तमान में एक बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है, जिसमें टैरिफ पर एक टसल (टैरिफ युद्ध) और भविष्य को लेकर अनिश्चितता है। सोवियत संघ के पतन (1991) और अमेरिका के मॉडल (मुक्त अर्थव्यवस्था, वैश्वीकरण, पूंजी बाजार, और मुक्त लोकतंत्र) की जीत की धारणा के बावजूद, आज वैश्वीकरण का अंत शुरू हो रहा है, जो केवल 30-35 वर्षों तक चला। अब एकल-बिंदु नियंत्रण (Single Point Control) समाप्त हो जाएगा और बहुध्रुवीय दुनिया (Multipolar World) का उदय होगा

भारत की आर्थिक स्थिति और अवसर:

चुनौतियों से उबरने का इतिहास: 1998 में पोखरण विस्फोट के बाद भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे। उस समय कई लोगों ने देश के खत्म होने की भविष्यवाणी की थी क्योंकि भारत में निवेश करने के लिए कोई $1 भी तैयार नहीं था। हालांकि, वाजपेयी सरकार ने रिसर्जेंट इंडिया बॉन्ड के माध्यम से NRI और भारतीय व्यापारियों से $5.2 बिलियन जुटाए। इसके बाद, पेट्रोल पर 50 पैसे का सेस लगाकर नेशनल हाईवे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए ₹1000 करोड़ जुटाए गए। हाउसिंग लोन की ब्याज दरें 14.5% से घटाकर 7.5% की गईं, जिससे मध्यम वर्ग ने बड़े पैमाने पर घर खरीदे, निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिला और सीमेंट व स्टील उद्योगों को तरलता मिली। इससे अनस्किल्ड लेबर को रोजगार भी मिला

वर्तमान उपलब्धियां:

    ◦ मोबाइल निर्यात: भारत मोबाइल निर्यात में चीन को पीछे छोड़कर अमेरिकी बाजार में हैंडसेट का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है, जिसका हिस्सा पहले 13% था और अब 44% हो गया है, जबकि चीन का हिस्सा 65% से 25% पर आ गया है।

    ◦ डिजिटल लेनदेन: भारत डिजिटल लेनदेन में दुनिया का नंबर एक देश है, जहाँ दुनिया के कुल डिजिटल लेनदेन का 48% अकेले भारत में होता है, जो अमेरिका और चीन के कुल योग से भी अधिक है। UPI ने वीजा को पीछे छोड़कर एक दिन में सबसे ज्यादा डिजिटल ट्रांजैक्शन करने का रिकॉर्ड बनाया है।

    ◦ कम असमानता: विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत में सबसे कम असमानता है, उनकी इंडेक्स में भारत 25.2 पर है।

    ◦ सामाजिक सहायता: भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहाँ मंदिरों में भंडारा और गुरुद्वारों में लंगर जैसे कई संस्थान हैं जहाँ साल में 365 दिन मुफ्त खाना मिलता है।

    ◦ वैश्विक मंच पर नेतृत्व: पेरिस में हुई वर्ल्ड AI समिट में भारत फ्रांस के साथ सह-अध्यक्ष (Co-Chair) बना

भविष्य के आर्थिक लाभार्थी: टैरिफ युद्ध और वैश्वीकरण के अंत से भारत को लाभ होने की संभावना है। बहुध्रुवीय दुनिया का लाभार्थी भी भारत ही होगा। यूरोप के सामने उत्पादन को चीन या भारत में स्थानांतरित करने के केवल दो विकल्प हैं; चीन के प्रति अविश्वास के कारण, भारत ही एकमात्र गंतव्य बचता है। राफेल बनाने वाली कंपनी डसॉल्ट एविएशन ने अपने फ्यूजलेज बनाने का ठेका टाटा डिफेंस सर्विसेज को दिया है, जो इस बदलाव की शुरुआत है।

भारत की भू-राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन:

सॉफ्ट स्टेट से मजबूत राष्ट्र: एक समय भारत को ‘सॉफ्ट स्टेट’ माना जाता था, जहाँ आतंकवादी घटनाएं होती थीं और हम सिर्फ शांति के कबूतर उड़ाते रहते थे। अब समय बदल गया है। उरी के बाद सर्जिकल स्ट्राइक, पुलवामा के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक, और पहलगाम के बाद 177 किमी अंदर नो-कॉन्टैक्ट वॉर (मिसाइल द्वारा जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के मुख्यालयों को नष्ट करना) – ये सभी भारत के बदलते रवैये को दर्शाते हैं कि भारत किसी भी चुनौती के आगे झुकने को तैयार नहीं है।

विश्व को डोमिनेट करने का उद्देश्य नहीं: भारत का उत्थान दुनिया पर हावी होने के लिए नहीं, बल्कि एक सहस्राब्दी की नींद से एक सबसे पुरानी सभ्यता के जागरण के लिए हो रहा है

अन्य प्रमुख देशों के सामने चुनौतियाँ (भारत के उत्थान के संदर्भ में):

अमेरिका: अल्ट्रा-इंडिविजुअलिज्म (अति-व्यक्तिवाद) का प्रभाव और सोशल सिक्योरिटी सिस्टम का संकट। 2024 में अमेरिका में 50% जनसंख्या सोशल सिक्योरिटी पर निर्भर हो गई है, और अगले 2-3 दशकों में इसकी देनदारी $60-62 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकती है, जो अमेरिका की जीडीपी का दोगुना है। इसके अलावा, 33 करोड़ जनसंख्या पर 39 करोड़ बंदूकें होने से आंतरिक सामाजिक चुनौतियाँ भी हैं।

चीन: उसकी आर्थिक वृद्धि शानदार दिखती है, लेकिन वन-चाइल्ड पॉलिसी के लागू होने के बावजूद जनसंख्या वृद्धि पर सवाल उठते हैं, जिससे जनसंख्या डेटा के अत्यधिक बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए जाने की एक थ्योरी है। रियल एस्टेट सेक्टर, जो जीडीपी में 30% का योगदान करता था, उसका बबल फट गया है (एवरग्रांड ने 2024 में दिवालियापन के लिए आवेदन किया)।

यूरोप: गंभीर जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ हैं, जहाँ 20 साल से कम उम्र के 25% युवा मुस्लिम हैं, जिनमें से अधिकांश मध्य पूर्व से आए प्रवासी हैं। उनके यहाँ लेबर रेट बहुत ऊँचे हैं और जनसंख्या वृद्ध हो रही है।

भारत के आंतरिक चुनौतियाँ:

• भारत के अंदरूनी लोगों द्वारा देश की ग्रोथ को रोकने और उसे खंडित करने के प्रयास लगातार जारी हैं।

• पाकिस्तान की 2016 की सीनेट रिपोर्ट में भारत की फाल्ट लाइन्स (मुस्लिम, क्रिश्चियन, सिख; और हिंदू समाज में दलित व अन्य पिछड़ा वर्ग) को निशाना बनाने की बात कही गई थी, ताकि हिंदुत्व की राजनीति और मोदी की एंटी-पाकिस्तान नीति को ध्वस्त किया जा सके। इसके लिए सिविल सोसाइटी, मीडिया, बुद्धिजीवियों और राजनीतिक दलों तक पहुँचने का उल्लेख किया गया था।

• “डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व” (2021) और “इरेडिकेशन ऑफ सनातन धर्म” (2022-23) जैसे सम्मेलनों का आयोजन, तथा जाति विभाजन को बढ़ाने और जाति जनगणना के मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए फंडिंग की जा रही है।

• कुछ नेताओं द्वारा उत्तर-दक्षिण, प्रांत, भाषा और जाति के आधार पर विभाजनकारी बयान दिए जा रहे हैं, जैसे कर्नाटक के मंत्री का अलग होने का विचार, तेलंगाना के सीएम का बिहारी लोगों के डीएनए पर टिप्पणी, और तमिलनाडु के मंत्री का यूपी-बिहार के लोगों पर बयान।

• इतिहास में जयचंद और जोगेंद्र नाथ मंडल जैसे लोगों के उदाहरण हैं जिन्होंने अपने घर के गद्दारों के कारण देश को नुकसान पहुंचाया।

भारत के उज्ज्वल भविष्य की दृष्टि:

• प्रधानमंत्री ने कहा है कि “यही समय है, सही समय है”।

• स्वामी विवेकानंद ने 1901 में कहा था कि भारत माता दिव्य आभा के साथ संपूर्ण विश्व को मार्गदर्शन देने के लिए पुनः सिंहासनारूढ़ होने जा रही हैं, और यह समय केवल एक शताब्दी दूर है (जो 2002 में पूरी हुई और 2003-04 में भारत की सफलता की कहानी शुरू हुई)।

• श्री अरविंदो ने कहा था कि भारत 175 साल के महान संक्रमण काल से गुजर रहा है (1836 से 2011 तक), जिसके बाद भारत अपनी चरम यात्रा प्रारंभ करेगा।

• भारत दुनिया को भौतिकतावाद के बजाय सुख की एक अलग अवधारणा (आध्यात्मिक सुख) प्रदान कर रहा है, जैसा कि कुंभ मेले में नागा साधुओं को देखकर महसूस होता है।

• भारत का गौरवशाली अतीत प्रेरणा दे रहा है और स्वर्णिम भविष्य प्रतीक्षा कर रहा है, बस वर्तमान में कोई गलती नहीं करनी है।

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भारत के भीतर कौन सी आंतरिक चुनौतियाँ देश की प्रगति और एकता में बाधा डाल सकती हैं?

भारत के भीतर कई आंतरिक चुनौतियाँ हैं जो देश की प्रगति और एकता में बाधा डाल सकती हैं। वक्ता के अनुसार, भारत को बाहरी चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ रहा है, बल्कि चुनौती अंदर से है, जहाँ ऐसे लोग हैं जो भारत के विकास को रोकने का प्रयास कर रहे हैं।

प्रमुख आंतरिक चुनौतियाँ इस प्रकार हैं:

देश को खंडित करने के सुनियोजित प्रयास: भारत के भीतर विभिन्न आधारों पर देश को खंडित करने के लिए पिछले कुछ वर्षों से एक सुनियोजित प्रयास चल रहा है।

सामाजिक और धार्मिक विभाजन को बढ़ावा देना:

    ◦ पाकिस्तान की सीनेट की अक्टूबर 2016 की एक रिपोर्ट में भारत की “फॉल्ट लाइन्स” को निशाना बनाने की बात कही गई थी, जिसमें मुस्लिम, ईसाई और सिख समुदायों को लक्षित करना शामिल है।

    ◦ यह रिपोर्ट हिंदू समाज के भीतर दलितों और अन्य पिछड़ा वर्गों को निशाना बनाने और “हिंदुत्व की राजनीति” तथा “मोदी की पाकिस्तान विरोधी नीति” को ध्वस्त करने का उल्लेख करती है।

    ◦ इन उद्देश्यों के लिए नागरिक समाज, मीडिया के कुछ वर्गों, बुद्धिजीवियों और राजनीतिक दलों तक पहुँच बनाने की बात भी कही गई थी।

वैचारिक अभियान और जातिगत भेद:

    ◦ “डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व” (2021) और “सनातन धर्म का उन्मूलन” (2022-23) जैसी वैश्विक और भारतीय कॉन्फ्रेंसों का उल्लेख किया गया।

    ◦ मार्च 2021 में एक फाउंडेशन द्वारा $4 लाख डॉलर के फंडिंग के साथ एक शोध पत्र प्रकाशित किया गया था, जिसमें हिंदू बहुसंख्यकवाद को नियंत्रित करने और जातिगत विभाजन को बढ़ाने के लिए “जाति जनगणना” के मुद्दे को आगे बढ़ाने का सुझाव दिया गया था। सरकार ने निर्णय लिया कि जाति की पहचान को विनाशकारी हाथों में नहीं जाने देना है, बल्कि उसका सकारात्मक और रचनात्मक उपयोग करना है।

क्षेत्रीय और भाषाई मतभेद:

    ◦ उत्तर-दक्षिण विभाजन: कर्नाटक के एक मंत्री ने कर योगदान के आधार पर दक्षिण को अलग होने का सुझाव दिया।

    ◦ प्रांतीय कलह: तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने बिहार के लोगों के डीएनए के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की, और तमिलनाडु के एक मंत्री ने उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के काम को कमतर आंका।

    ◦ भाषाई संघर्ष: तमिल बनाम हिंदी, उत्तर भारतीय बनाम मराठी (ऐतिहासिक), और अब मराठी बनाम हिंदी, कन्नड़ बनाम हिंदी जैसे नए भाषाई तनाव देखे जा रहे हैं, और भविष्य में बांग्ला बनाम हिंदी के संघर्ष की भी भविष्यवाणी की गई है। यह सब भारत को प्रांतों, क्षेत्रों, भाषाओं और जातियों के आधार पर लड़ाने के प्रयास का हिस्सा है।

स्वार्थपरक सोच और आंतरिक विश्वासघात:

    ◦ समाज के कुछ वर्गों में स्वार्थपरक दृष्टिकोण का उदय, जहाँ लोग अपने व्यक्तिगत, क्षेत्रीय, वर्ग या जातिगत स्वार्थों को प्राथमिकता देते हैं। यह स्वार्थपरकता अंततः विभाजन और विनाश की ओर ले जाती है।

    ◦ वक्ता ने ऐतिहासिक रूप से “अपने घर के जयचंदों” (आंतरिक गद्दारों) द्वारा भारत की पराजय का उल्लेख किया है, जो बाहरी दुश्मनों की चालों से कहीं अधिक खतरनाक है।

    ◦ सिलहट का उदाहरण (जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है) एक चेतावनी के रूप में प्रस्तुत किया गया, जहाँ जोगेंद्र नाथ मंडल नामक एक अनुसूचित जाति के नेता ने अपने समुदाय के स्वार्थ के लिए कट्टरपंथियों का साथ दिया, जिसके परिणामस्वरूप हिंदुओं के वोट बँट गए, सिलहट पाकिस्तान का हिस्सा बन गया, और बाद में वहाँ हिंदुओं को हिंसा, बलात्कार और धर्म परिवर्तन का सामना करना पड़ा।

इन सभी आंतरिक चुनौतियों को संबोधित करना भारत की निरंतर प्रगति और मजबूत एकता के लिए महत्वपूर्ण है।

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